हैं बहुत काम ज़िन्दगी के पास
नहीं रुकना है बस मुझी के पास
मिलने आना तो ऐसे आना तुम
छोड़ के वक़्त को घड़ी के पास
रोक रक्खा था वक़्त जिसके लिए
नहीं है वक़्त अब उसी के पास
दोस्त हम हैं किसी के ठुकराए
जा नहीं सकते अब किसी के पास
देखना कौन चाहे वक़्त अपना
आंख जाती है ख़ुद घड़ी के पास
याद आती हैं झील सी आंखें
बैठे रहते हैं हम नदी के पास
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