Zubair Ali Tabish Ghazals: जुबैर अली ताबिश जीवन के सभी मिजाज और रंगों के शायर हैं। यह मशहूर युवा शायरों में से एक है और सोशल मीडिया पर भी बेहद लोकप्रिय हैं। आज का यह ब्लॉग Zubair Ali Tabish के सभी ग़ज़लों का संग्रह हैं, जिसमे “10 Best Zubair Ali Tabish Ghazals ज़ुबैर अली ताबिश की 10 सबसे लोकप्रियग़ज़लें” शामिल हैं।

ये सभी ग़ज़लें ज़ुबैर अली ताबिश के जीवन से बेहद प्रभावित है। इन ग़ज़लों में खुद के विचार भी है और समाज के वास्तविकता को भी दर्शाते है। नीचे Zubair Ali Tabish के सभी ग़ज़लें है। इन्हें पढ़ने के बाद अपना विचार Comment में जरूर लिखे।
Post Contents
Zubair Ali Tabish Ghazals.

1. रास्ते जो भी चमक-दार नज़र आते हैं
रास्ते जो भी चमक-दार नज़र आते हैं
सब तेरी ओढ़नी के तार नज़र आते हैं
कोई पागल ही मोहब्बत से नवाज़ेगा मुझे
आप तो ख़ैर समझदार नज़र आते हैं
मैं कहाँ जाऊँ करूँ किस से शिकायत उस की
हर तरफ़ उस के तरफ़-दार नज़र आते हैं
ज़ख़्म भरने लगे हैं पिछली मुलाक़ातों के
फिर मुलाक़ात के आसार नज़र आते हैं
एक ही बार नज़र पड़ती है उन पर ‘ताबिश’
और फिर वो ही लगातार नज़र आते हैं

2. वो पास क्या ज़रा सा मुस्कुरा के बैठ गया
वो पास क्या ज़रा सा मुस्कुरा के बैठ गया
मैं इस मज़ाक़ को दिल से लगा के बैठ गया
जब उस की बज़्म में दार-ओ-रसन की बात चली
मैं झट से उठ ग या और आगे आ के बैठ गया
दरख़्त काट के जब थक गया लकड़-हारा
तो इक दरख़्त के साए में जा के बैठ गया
तुम्हारे दर से मैं कब उठना चाहता था मगर
ये मेरा दिल है कि मुझ को उठा के बैठ गया
जो मेरे वास्ते कुर्सी लगाया करता था
वो मेरी कुर्सी से कुर्सी लगा के बैठ गया
फिर उस के बा’द कई लोग उठ के जाने लगे
मैं उठ के जाने का नुस्ख़ा बता के बैठ गया

3. अब उस का वस्ल महँगा चल रहा है
अब उस का वस्ल महँगा चल रहा है
तो बस यादों पे ख़र्चा चल रहा है
मोहब्बत दो-क़दम पर थक गई थी
मगर ये हिज्र कितना चल रहा है
बहुत ही धीरे धीरे चल रहे हो
तुम्हारे ज़ेहन में क्या चल रहा है
बस इक ही दोस्त है दुनिया में अपना
मगर उस से भी झगड़ा चल रहा है
दिलों को तोड़ने का फ़न है तुम में
तुम्हारा काम कैसा चल रहा है
सभी यारों के मक़्ते हो चुके हैं
हमारा पहला मिस्रा चल रहा है
ये ‘ताबिश’ क्या है बस इक खोटा सिक्का
मगर ये खोटा सिक्का चल रहा है

4. भरे हुए जाम पर सुराही का सर झुका तो बुरा लगेगा
भरे हुए जाम पर सुराही का सर झुका तो बुरा लगेगा
जिसे तेरी आरज़ू नहीं तू उसे मिला तो बुरा लगेगा
ये ऐसा रस्ता है जिस पे हर कोई बारहा लड़खड़ा रहा है
मैं पहली ठोकर के बाद ही गर सँभल गया तो बुरा लगेगा
मैं ख़ुश हूँ उस के निकालने पर और इतना आगे निकल चुका हूँ
के अब अचानक से उस ने वापस बुला लिया तो बुरा लगेगा
ये आख़िरी कंपकंंपाता जुमला कि इस तअ’ल्लुक़ को ख़त्म कर दो
बड़े जतन से कहा है उस ने नहीं किया तो बुरा लगेगा
न जाने कितने ग़मों को पीने के बा’द ताबिश चढ़ी उदासी
किसी ने ऐसे में आ के हम को हँसा दिया तो बुरा लगेगा

5. पहले मुफ़्त में प्यास बटेगी
पहले मुफ़्त में प्यास बटेगी
बा’द में इक-इक बूँद बिकेगी
कितने हसीं हो माशा-अल्लाह
तुम पे मोहब्बत ख़ूब जचेगी
ज़ालिम बस इतना बतला दे
क्या रोने की छूट मिलेगी
आज तो पत्थर बाँध लिया है
लेकिन कल फिर भूक लगेगी
मैं भी पागल तू भी पागल
हम दोनों की ख़ूब जमेगी
यार ने पानी फेर दिया है
ख़ाक हमारी ख़ाक उड़ेगी
दुनिया को ऐसे भूलूँगा
दुनिया मुझ को याद करेगी
Also Read: 10+ Best Ghazals of Ankit Maurya

6. तुम्हारे ग़म से तौबा कर रहा हूँ
तुम्हारे ग़म से तौबा कर रहा हूँ
तअ’ज्जुब है मैं ऐसा कर रहा हूँ
है अपने हाथ में अपना गिरेबाँ
न जाने किस से झगड़ा कर रहा हूँ
बहुत से बंद ताले खुल रहे हैं
तिरे सब ख़त इकट्ठा कर रहा हूँ
कोई तितली निशाने पर नहीं है
मैं बस रंगों का पीछा कर रहा हूँ
मैं रस्मन कह रहा हूँ ”फिर मिलेंगे”
ये मत समझो कि वादा कर रहा हूँ
मिरे अहबाब सारे शहर में हैं
मैं अपने गाँव में क्या कर रहा हूँ
मिरी हर इक ग़ज़ल असली है साहब
कई बरसों से धंदा कर रहा हूँ

7. वैसे तू मेरे मकाँ तक तू चला आता है
वैसे तू मेरे मकाँ तक तू चला आता है
फिर अचानक से तिरे ज़ेहन में क्या आता है
आहें भरता हूँ कि पूछे कोई आहों का सबब
फिर तिरा ज़िक्र निकलता है मज़ा आता है
तेरे ख़त आज लतीफ़ों की तरह लगते हैं
ख़ूब हँसता हूँ जहाँ लफ़्ज-ए-वफ़ा आता है
जाते-जाते ये कहा उस ने चलो आता हूँ
अब यही देखना है जाता है या आता है
तुझ को वैसे तो ज़माने के हुनर आते हैं
प्यार आता है कभी तुझ को बता आता है

8. बैठे-बैठे इक दम से चौंकाती है
बैठे-बैठे इक दम से चौंकाती है
याद तिरी कब दस्तक दे कर आती है
तितली के जैसी है मेरी हर ख़्वाहिश
हाथ लगाने से पहले उड़ जाती है
मेरे सज्दे राज़ नहीं रहने वाले
उस की चौखट माथे को चमकाती है
इश्क़ में जितना बहको उतना ही अच्छा
ये गुमराही मंज़िल तक पहुँचाती है
पहली पहली बार अजब सा लगता है
धीरे धीरे आदत सी हो जाती है
तुम उस को भी समझा कर पछताओगे
वो भी मेरे ही जैसी जज़्बाती है

9. दिल फिर उस कूचे में जाने वाला है
दिल फिर उस कूचे में जाने वाला है
बैठे-बिठाए ठोकर खाने वाला है
तर्क-ए-तअल्लुक़ का धड़का सा है दिल को
वो मुझ को इक बात बताने वाला है
कितने अदब से बैठे हैं सूखे पौदे
जैसे बादल शे’र सुनाने वाला है
ये मत सोच सराए पर क्या बीतेगी
तू तो बस इक रात बिताने वाला है
ईंटों को आपस में मिलाने वाला शख़्स
अस्ल में इक दीवार उठाने वाला है
गाड़ी की रफ़्तार में आई है सुस्ती
शायद अब स्टेशन आने वाला है
आख़री हिचकी लेनी है अब आ जाओ
बा’द में तुम को कौन बुलाने वाला है

10. एक पहुँचा हुआ मुसाफ़िर है
एक पहुँचा हुआ मुसाफ़िर है
दिल भटकने में फिर भी माहिर है
कौन लाया है इश्क़ पर ईमाँ
मैं भी काफ़िर हूँ तू भी काफ़िर है
दर्द का वो जो हर्फ़-ए-अव्वल था
दर्द का वो ही हर्फ़-ए-आख़िर है
काम अधूरा पड़ा है ख़्वाबों का
आज फिर नींद ग़ैर-हाज़िर है
लाज रख ली तिरी समाअ’त ने
वर्ना ‘ताबिश’ भी कोई शाइर है
“Zubair Ali Tabish Ghazals ज़ुबैर अली ताबिश की 10 सबसे लोकप्रिय ग़ज़ल” आपको कैसा लगा और साथ ही कोई सवाल या सुझाव हो तो निचे कमेंट में जरूर बताएं।
अगर आपको इस पोस्ट में कोई त्रुटि मिलती है, तो कृपया हमें ईमेल करके या कमेंट करके इसे सुधारने का मौका दें। ईमेल करे: [email protected] और [email protected]
GIPHY App Key not set. Please check settings