नही होता कोई अपना, एक अंजान शहरो मे..
अपनो के लिए, अंजान बने चले आते है..
आँखो मे सपने और कंधो पे थोड़ी जिम्मेदारी लिए..
घर से दूर, रोजगार के लिए चले आते है..
संघर्ष मे शुरुआत करते है..
धीरे-धीरे अपनी ज़रूरते पुरी करते जाते है..
समाज मे अपनी एक नई पहचान बनाने..
घर से दूर, रोजगार के लिए चले आते है..
परिवार की हर खुशीयों को पुरा करने के लिए..
गाँव को भूल के, शहरों मे खो जाते है..
जिंदगी की दौड़ मे अपना परचम लहराने..
घर से दूर, रोजगार के लिए चले आते है..
Written By: Deepak Upadhyay
बहुत ही सुन्दर रचना ❣️
सच में एक बिहारी का दर्द ऐसा ही होता है आपने बहुत सुंदर लिखा है